भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि भारत के स्वाभिमान को प्रतिष्ठित करते हुए विक्रमादित्य की न्याय व्यवस्था का जन-जन में व्यापक प्रसार आवश्यक है। विक्रमादित्य ने उत्कृष्ट न्याय, प्रशासन और जनकल्याण का जो उदाहरण स्थापित किया है, उसकी चर्चा देश-दुनिया के विभिन्न लोक अंचलों में होती है। उनसे जुड़े हुए लोक साहित्य और पुरातात्विक सामग्री के अध्ययन से शोध की नई दिशाएं उद्घाटित हो रही हैं। विक्रमोत्सव आज संपूर्ण दुनिया में विविधमुखी संकल्पनाओं के कारण अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करने वाला उत्सव बन गया है। महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ, स्वराज संस्थान संचालनालय, मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित विक्रमोत्सव-2024 अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा विक्रम “सम्राट विक्रमादित्य की न्याय व्यवस्था और बेतालभट्ट: लोकाख्यानों के आलोक” पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने यह बातें कहीं।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय कानून एवं न्याय तथा संस्कृति व संसदीय कार्य राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य का अवदान राजस्थान के दूरस्थ अंचलों तक रहा है, जिस पर व्यापक शोध होगा। राजस्थान में विक्रमादित्य के शौर्य एवं पराक्रम के महत्वपूर्ण प्रमाण प्राप्त हुए हैं, जिनका अध्ययन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया गया है। बीकानेर जिले के बिकमपुर ग्राम का संबंध विक्रमादित्य से रहा है। आने वाले समय में उज्जैन के साथ उस क्षेत्र की सम्बद्धता की पड़ताल के लिए शोध कार्य करवाया जाएगा। सम्राट विक्रमादित्य श्रेष्ठ न्याय व्यवस्था के प्रतीक माने जाते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कार्यों से सांस्कृतिक पुनरुत्थान का युग आरंभ हुआ है। वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री मोदी की संकल्पना से भारतीय कानून एवं दंड संहिता में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए जा रहे हैं।
“लोकाख्यानों के आलोक में विक्रमादित्य” पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के तकनीकी सत्र की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य वक्ता वरिष्ठ इतिहासविद पद्मश्री डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित, कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह, श्री संजय नाहर, कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा आदि ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। वक्ताओं ने विभिन्न लोकांचलों की अनुश्रुतियों और आख्यानों में उपलब्ध विक्रमादित्य के सन्दर्भों और पुरा सामग्री पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विक्रमादित्य और जनमानस का गहरा संबंध है, जिस पर व्यापक शोध की जरूरत है।
अतिथियों द्वारा महाराजा विक्रमादित्यकालीन पुरातात्विक प्रदर्शनी का अवलोकन किया गया। प्रारंभ में अतिथियों द्वारा वाग्देवी की प्रतिमा और सम्राट विक्रमादित्य के चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की गई। अतिथियों का स्वागत विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. कानिया मेड़ा, कर्मचारी संघ के अध्यक्ष श्री संजय गोस्वामी, श्री राजेश ठाकुर, युवा नेता श्री आदर्श चौधरी आदि ने किया। कार्यक्रम में सम्राट विक्रमादित्य की न्यायप्रियता पर केंद्रित लघु नाट्य प्रस्तुति विक्रम विश्वविद्यालय की विधि अध्ययनशाला के विद्यार्थियों द्वारा की गई।
संगोष्ठी का बीज व्याख्यान समन्वयक कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने दिया। तकनीकी सत्र का संचालन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी एवं कुलसचिव डॉ अनिल कुमार शर्मा ने आभार माना। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजनों, गणमान्य नागरिकों, शिक्षकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया।