नईदिल्ली। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 400 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर उतरी है। पार्टी के नेता अकेले दम 370 सीटें जीतने के दावे कर रहे हैं। बीजेपी के दावे और टारगेट को लेकर चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) ने खास बातचीत में कहा है कि बीजेपी का नंबर पिछली लोकसभा में 303 था। इस बार भी पार्टी का नंबर वही या उससे कुछ बेहतर होगा, उससे खराब नहीं होगा। ऐसा मुझे लगता है।
एनडीए की कितनी सीटें आएंगी, ये आकलन बेमानी है। जीतने के बाद कौन कहां जाएगा, कहा नहीं जा सकता लेकिन बीजेपी 270 से नीचे भी नहीं जा रही है। पीके ने आगे जोड़ा कि प्रधानमंत्री ने जनवरी में पहली बार कहा था कि हमें 370 और एनडीए की 400, मैं तब से कह रहा हूं कि बीजेपी की 370 सीटें तो आ ही नहीं सकतीं। यह अपने कार्यकर्ताओं के लिए है। उन्होंने ये भी कहा कि बडे फैसले लेने की बात प्रधानमंत्री ने जब ये चुनाव शुरू हुआ था, उससे पहले कहा था और इसमें कहीं कोई दो मत नहीं है। जब तीसरी बार पीएम मोदी आएंगे तो कुछ बडे फैसले लेते दिखेंगे लेकिन जो पूरा कैंपेन चला है, उसमें एक ही चीज देखता हूं कि तीसरे टर्म में वह इतने ताकतवर नहीं होंगे जितने दूसरे टर्म में थे। नंबर भले ज्यादा आ जाएगा।
पीके ने कहा कि ज्यादा सीटें लाकर भी ये चुनाव मोदीजी की बेस्ट इनिंग नहीं होंगे। उन्होंने इसे क्रिकेट के उदाहरण से समझाते हुए कहा कि कहा कि मान लीजिए विराट कोहली ने बिल्कुल फ्लॉलेस 101 रन बनाए। किसी दूसरी इनिंग में विराट कोहली ने 140 रन बनाए लेकिन उस दौरान उनके छह कैच ड्रॉप हुए। रिकॉर्ड पर तो दोनों ही सेंचुरी लिखी जाएगी लेकिन आप किसे बेहतर मानेंगे? पीके ने कहा कि जब इतिहास लिखा जाएगा तब रिकॉर्ड बुक में यह भी लिखा जाएगा कि कैच नहीं छूटे होते तो शायद।।।और अगर आप विराट कोहली से भी पूछेंगे कि दोनों में से बेहतर इनिंग कौन सी थी? तो वो भी 101 वाली इनिंग को ही बेहतर बताएंगे। 2014 की जीत मोदीजी की फ्लॉलेस विक्ट्री थी, उम्मीद की विक्ट्री थी। लोगों को लगता था कि वह (नरेंद्र मोदी) आएंगे और देश बदल जाएगा। पीके ने कहा कि 2019 की विक्ट्री विश्वास की विक्ट्री थी। 2019 में मोदी के प्रति विश्वास का वोट था कि हमें इन पर भरोसा है, इन चीजों की उन्होंने शुरुआत की है और हर क्षेत्र में अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि 2024 में अल्टरनेटिव नहीं होने की विक्ट्री है। 2024 में उनके सामने कोई बेहतर विकल्प, बेहतर चैलेंजर नहीं आया। इससे इनकार नहीं कर रहा कि वो जीत के आएंगे, सरकार बनाएंगे और सरकार चलाएंगे लेकिन मोदीजी के लिए जो अंधभक्ति थी, जो भरोसा था, जो पब्लिक सपोर्ट था जो एक लीडर की ताकत होती है, उसकी इंटेंसिटी में कमी आई है।