नईदिल्ली। बीआरआई जैसे मेगा प्रोजेक्ट के दम पर चीन भले ही कई देशों को अपने आर्थिक जाल में फांस रहा हो, लेकिन बड़ी संख्या में विदेशी निवेशक चीन से अपना कारोबार समेटने लगे हैं। इनमें यूरोपीय कंपनियां सबसे ज्यादा हैं। दूसरी तरफ भारत इन कंपनियों की गुड लिस्ट में है। बदले रुझान के बाद दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप बड़े निवेश के लिए कंपनियों की पसंद बने हैं। इसके बाद भारत और उत्तर अमरीका हैं, जहां विदेशी निवेशक कंपनियां स्थापित करने के इच्छुक हैं।
500 कंपनियों में 40 फीसदी कारोबार समेटने की तैयारी
यूरोपियन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन चाइना के सर्वेक्षण के सर्वे में शामिल 500 कंपनियों में 40 फीसदी या तो कारोबार समेट चुकी हैं या समेटने की तैयारी में हैं। हालांकि 60 फीसदी कंपनियां चीन में व्यापार जारी रखने के लिए तैयार हैं, लेकिन इनकी संख्या भी पिछले वर्ष की तुलना में घटी है। इसकी बड़ी वजह चीनी सरकार का रवैया और निराशाजनक माहौल है। सर्वे में 15 फीसदी कंपनियों ने कहा कि वर्ष 2023 में उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है।
क्यों हो रहा मोहभंग
शुक्रवार को जारी बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे में चैंबर ने कहा कि चीन में कारोबारी संभावनाएं अब तक सबसे ज्यादा निराशाजनक स्थिति में हैं। इन कंपनियों का कहना है कि नियम कानून चीनी कंपनियों के फायदे को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। यूरोपीयन चैंबर के अध्यक्ष येन्स एस्केलुड कहते हैं कि प्रतिकूल माहौल से उद्योगपतियों का भरोसा कम हो गया। कंपनियों को बाजार का दबाव, प्रतिद्वंद्विता और गिरती मांग अब स्थायी रूप से नजर आने लगी हैं। उन्होंने कहा, व्यापार के लिए माहौल में सुधार नहीं किया गया तो कंपनियां उद्योग के लिए नए विकल्पों की तलाश करेंगी, जहां उन्हें ज्यादा पारदर्शिता और स्थायित्व मिल सके।
भारत में कारोबार अनुकूल संभावना
चीन में काम कर रही 500 यूरोपीय कंपनियों में आधे से ज्यादा वहां खर्चा कम करने पर विचार कर रही हैं, इनमें 26 फीसदी कंपनियां ऐसी हैं, जो कर्मचारियों को कम करने का मन बना रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यह संख्या और बढ़ सकती है, क्योंकि रोजगार का क्षेत्र पहले ही दबाव में है। दूसरी ओर भारत में विदेशी निवेश के लिए माहौल सकारात्मक है। स्वीडन के एक सर्वे में सोमने आया कि स्वीडन सहित यूरोप की दस में से आठ कंपनियों ने भारत में निवेश की मंशा जताई है।