नई दिल्ली। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। चर्चा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार की ओर से ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर बिल लाया जाएगा। सरकार के इस कदम को लेकर विपक्ष हमलावर है। दरअसल ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ मसौदे को लागू करने के लिए सरकार को संविधान संशोधन और कानून में बदलाव करना पड़ेगा। खास बात यह है कि इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि कौन सा दल इस प्रस्ताव के समर्थन में है और कौन सी पार्टी विरोध में खड़ी है। वन नेशन-वन इलेक्शन’ को लेकर पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी ने 62 सियासी दलों से सलाह मशविरा किया था। इनमें से 32 दलों ने इसका समर्थन किया था, जबकि 15 राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया था। केंद्र सरकार की तरफ से संसद में अगर यह विधेयक लाया जाता है तो यह उनके लिए अग्निपरीक्षा से कम कुछ भी नहीं होगा। क्योंकि कई राज्यों में तो भाजपा की सरकार है और साथ ही जिन राज्यों में विपक्ष की सरकार है, वहां सरकार को विचार-विमर्श की भी जरूरत पड़ेगी। राज्यसभा और लोकसभा में सरकार के पास सांसदों की संख्या अभी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि किसी भी संविधान संशोधन के लिए सरकार के पक्ष में दो-तिहाई मत चाहिए। यानी कि जिस दिन सरकार इस विधेयक को सदन में पेश करेगी और इस पर मतदान होगा, उस दिन अगर लोकसभा में 543 सदस्य मौजूद रहते हैं, तो इस संशोधन को पास कराने के लिए 362 सांसदों का समर्थन होना चाहिए। दूसरी तरफ राज्यसभा में इंडी गठबंधन के 85 सदस्य हैं और सरकार के पक्ष में 113 और 6 नामित सदस्यों समेत यह संख्या 119 हो जाती है। ऐसे में मतदान के दिन अगर राज्यसभा में सभी सदस्य मौजूद रहेंं, तो सरकार को इस विधेयक को पास कराने के लिए 164 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी। अब सरकार की एक चिंता यह भी है कि देश की छह राष्ट्रीय पार्टियाें में से ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव के पक्ष में केवल दो भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी है, जबकि बाकी के चार दल आप, कांग्रेस, माकपा और बसपा इसका विरोध कर रही है। ऐसे में सरकार को एनडीए के साथियों के साथ विपक्ष के कई दलों को भी इसके पक्ष में मतदान के लिए साथ लाना होगा। ऐसे में सरकार के लिए इस मुद्दे पर आम सहमति बनाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। अब कई राज्यों में हाल में चुनाव भी होने हैं, ऐसे में इन चुनावों का असर भी इस पर देखने को मिलेगा। इसके साथ ही सरकार के पास एक रास्ता यह भी है कि इस संविधान संशोधन विधेयक को चर्चा के लिए वह संसदीय समिति के पास भेज दे, जहां इस पर चर्चा के बाद आम सहमति बनाई जा सके। क्योंकि इस संसदीय समिति में विपक्षी पार्टी के सदस्य भी होते हैं। सरकार को इस प्रस्ताव के पक्ष में जिन दलों का समर्थन मिल रहा है, उनमें भाजपा के साथ एनडीए के अन्य सहयोगी दलों में आजसू, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास पासवान), जनता दल (यूनाइटेड), नेशनल पीपुल्स पार्टी, शिवसेना, टी़डीपी, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस), बीजेडी जो एनडीए का हिस्सा नहीं है, असम गण परिषद, एआईएडीएमके, अकाली दल मिजो नेशनल फ्रंट, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ऑफ असम, राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक प्रगतिशील पार्टी, युवजन श्रमिका रायथू कांग्रेस पार्टी जैसी कई अन्य पार्टियां हैं। वहीं कांग्रेस, बसपा, कम्युनिस्ट पार्टी (एम), आप, टीएमसी, एआईएमआईएम, नागा पीपुल्स फ्रंट, डीएमके, आरजेडी, मरुमलारची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार), अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा जैसी पार्टियां सरकार के इस फैसले के विरोध में खड़ी हैं। विपक्ष के विरोध को देखते हुए इस प्रस्ताव को दोनों सदनों से पास कराना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी। ऐसे में विपक्ष को साधने के लिए सरकार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल और संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजीजू को जिम्मेदारी सौंपी है। ये तीनों नेता इस प्रस्ताव से जुड़े तमाम बिंदुओं पर विपक्षी दलों से चर्चा कर सर्वसम्मति बनाने का काम करेंगे। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। समिति का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। समिति ने 191 दिन तक राजनीतिक दलों तथा विभिन्न हितधारकों के साथ चर्चा के बाद 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में कोविंद समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी गई।