नई दिल्ली। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार 2024 में सत्ता में आई थी, लेकिन अब उसके लिए नया साल 2025 बहुत कुछ तय करने वाला होगा। भाजपा को लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता जरूर मिल गई, लेकिन अपने दम पर 240 सीटें ही मिल पाने के चलते वह सत्ता से चूक गई। ऐसी स्थिति में उसके लिए जेडीयू की 12 और लोजपा की 5 सीटें अहम हैं। वहीं आंध्र की सत्ताधारी पार्टी टीडीपी की 14 और एकनाथ शिंदे गुट की 9 सीटें 272 के आंकड़े को बनाए रखने के लिए अहम हैं। बिहार में नीतीश कुमार करीब दो दशक से ऐसी ताकत बने हुए हैं, सत्ता जिनके इर्द-गिर्द ही घूमती है। चाहे आरजेडी के सहयोग से बने या फिर भाजपा के साथ, सीएम नीतीश कुमार ही होते हैं। ऐसे में जब अटल जी की जयंती पर डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि भाजपा की बिहार में अपने दम पर सरकार होना ही अटल जी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगा तो यह बात जेडीयू को चुभ गई। इस रस्साकशी के बीच भी भाजपा पर दबाव होगा कि वह बिहार यूनिट के नेताओं को साधे रखे और नीतीश कुमार से हार्ड बारगेनिंग भी कर ले। दोनों दलों के लिए सीट बंटवारा भी आसान नहीं होगा। इसके अलावा चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं को भी भाजपा साधे रखना चाहेगी। दरअसल बिहार का चुनाव नतीजा दिल्ली तक असर डाल सकता है। यदि यहां एनडीए को चुनाव में पराजय झेलनी पड़ी तो फिर भाजपा और जेडीयू में खींचतान दिख सकती है और इसका सीधा असर दिल्ली तक दिखेगा।इसलिए भाजपा के लिए बिहार का चुनाव महाराष्ट्र और हरियाणा से कम महत्व नहीं रखता। अगले ही महीने दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव हैं। यहां का नतीजा भाजपा के लिए अहम जरूर है, लेकिन इसका असर केंद्र की सरकार पर नहीं दिखेगा। यहां भाजपा के ही 7 सांसद हैं और विधानसभा के नतीजों से इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा। ऐसे में सभी की नजर बिहार और नीतीश कुमार पर होगी।