जबलपुर। जायद सीजन में उड़द एवं मूंग का बोनी कार्य तेजी से चल रहा है किसानों द्वारा गेहूं फसल की कटाई के बाद उड़द एवं मूंग फसलों की बोनी की जा रही है। प्रायः हार्वेस्टर से गेहूं फसल की कटाई उपरांत जो फसल अवशेष बचता है, उसको आग लगाकर नष्ट कर दिया जाता है, इस प्रक्रिया को नरवाई जलाना कहते हैं। नरवाई जलाने से मृदा की गुणवत्ता का हास होता है। इससे भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त होती है, उपस्थित सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। सूक्ष्म जीवों के नष्ट होने के फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण रूक जाता है। लगातार नरवाई जलाने से मिट्टी की ऊपरी सतह जलकर कठोर हो जाती है, खेत की जल धारण क्षमता कम होने लगती है एवं फसलें जल्दी सूखती हैं। नरवाई जलाने से मेढ़ों पर लगे पेड-पौधे नष्ट होने से उन पर पल रहे मित्र कीटों को भी नुकसान होता है। नरवाई के धुंए से पर्यावरण प्रदूषित होता है, तापमान में वृद्धि होने से वातावरण और अधिक गर्म होता जा रहा है। उप संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास के निर्देशन में जिले में लगभग 1500 एकड़ में नरवाई प्रबंधन से संबंधित फसल प्रदर्शन किये जा रहे हैं। जिसमें गेहूं की फसल की कटाई के तुरंत बाद नरवाई को जलाए बिना हैप्पी सीडर, सुपर सौडर एवं स्मार्ट सीडर के माध्यम से उड़द एवं मूंग की बोनी की जा रही है। आज 4 अप्रैल को विकासखंड पनागर के ग्राम पिपरिया बनियाखेड़ा में सुश्री पूनम चक्रवर्ती, कृषि विस्तार अधिकारी की उपस्थिति में कृषक श्री भागीरथ पटेल एवं विनय पटेल के खेत पर 01-01 एकड़ में, ग्राम नुनियाकला में श्रीमति मोनिका झा, कृषि विस्तार अधिकारी की उपस्थिति में कृषक तीरथ पटेल एवं प्रहलाद पटेल के खेत पर 01-01 एकड़ में एवं सिहोरा विकासखंड के ग्राम घोरा कोनी में सुश्री अदिति राजपूत, कृषि विस्तार अधिकारी की उपस्थिति में कृषक श्री पुरुषोत्तम असाटी एवं कमल पालीवाल के खेत पर हैप्पी सीडर द्वारा नरवाई प्रबंधन प्रदर्शन आयोजित किये गये। नरवाई प्रबंधन प्रदर्शन आयोजन के दौरान उपस्थित कृषि विस्तार अधिकारियों ने बताया कि, यदि किसान नरवाई जलाने के बजाए नरवाई का उचित प्रबंधन करे तो पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। हार्वेस्टर से कटाई उपरांत खेत में 8-12 इंच के डंठल शेष रहते हैं, उन्हें स्ट्रा रीपर का उपयोग कर भूसा बनाया जा सकता है। जिसका उपयोग पशुओं को चारे तथा अतिरिक्त आय के साधन के रूप में किया जा सकता है। नरवाई को नष्ट करने के लिए रोटावेटर का उपयोग किया जा जाए, जो नरवाई को बारीक कर मिट्टी में मिला देता है।