पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 18 ज़िलों की 121 सीटों पर गुरुवार को मतदान संपन्न हो गया। इस चरण में मतदाताओं का उत्साह अभूतपूर्व रहा — 64.69 फीसदी लोगों ने वोट डाला, जो कि 2020 के मुकाबले करीब साढ़े आठ फीसदी अधिक है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इन 121 सीटों पर पिछली बार करीब 56 फीसदी मतदान हुआ था। इतना अधिक मतदान बिहार की सियासत में नया अध्याय लिख रहा है, क्योंकि यह प्रदेश के इतिहास में अब तक का सबसे ज़्यादा मतदान है। साल 2000 में 62.57 फीसदी वोटिंग का जो रिकॉर्ड था, वह इस बार टूट गया है।
कहां-कहां सबसे ज्यादा और सबसे कम मतदान
मुज़फ़्फ़रपुर में 70.96%, समस्तीपुर में 70.63%, वैशाली में 67.37% और मधेपुरा में 67.21% वोटिंग दर्ज की गई। वहीं पटना जिले में सबसे कम, 57.93% मतदान हुआ। औसतन पहले चरण का कुल मतदान 64.69% रहा। 2020 में पहले फेज़ में 3.70 करोड़ मतदाता थे, जिनमें से 2.06 करोड़ ने वोट किया था। इस बार मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3.75 करोड़ हो गई। ज़ाहिर है कि इस बढ़े हुए मतदान को लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी व्याख्या पेश कर रहे हैं।
इतिहास कहता है — बिहार में जब-जब वोटिंग बढ़ी, सत्ता बदली
बिहार की चुनावी राजनीति में एक दिलचस्प पैटर्न देखा गया है — जब भी मतदान में 5% से ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है, सत्ता परिवर्तन हुआ है।
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1967 में वोटिंग 44.5% से बढ़कर 51.5% हुई — कांग्रेस सत्ता से बाहर।
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1980 में मतदान 50.5% से बढ़कर 57.3% — जनता पार्टी हारी, कांग्रेस लौटी।
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अब 2025 में 8% से ज़्यादा वोटिंग बढ़ी है — क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ज़्यादा मतदान का मतलब हमेशा ‘एंटी इंकम्बेंसी’ नहीं होता। कभी-कभी यह सत्ता में बैठे दल के पक्ष में भी जाता है।
सियासी समीकरण बदले, मुकाबला भी बदला
इस बार के चुनाव में कई नए समीकरण देखने को मिल रहे हैं। एनडीए में जेडीयू 57, बीजेपी 48, एलजेपी (रामविलास) 13, आरएलएम 2 और हम पार्टी एक सीट पर मैदान में है। वहीं महागठबंधन की ओर से आरजेडी 72, कांग्रेस 24, सीपीआई-एमएल 14, सीपीआई और वीआईपी छह-छह सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम 8 सीटों पर मैदान में है, जबकि जन सुराज पार्टी ने पहले चरण में 114 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। इस बार 104 सीटों पर सीधा और 17 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला।
बढ़ी वोटिंग, बढ़ी बेचैनी
इतिहास और आंकड़े दोनों संकेत देते हैं कि बिहार में बढ़े हुए मतदान के नतीजे सियासत की दिशा बदल सकते हैं।
अब सवाल यही है कि यह रिकॉर्ड वोटिंग बदलाव की दस्तक है या सरकार के समर्थन की मुहर?
