नई दिल्ली। पृथ्वी की सतह हमेशा हलचल में रहती है, लेकिन इस बार वैज्ञानिकों की नई खोज ने दुनिया का ध्यान खींच लिया है। अमेरिका की कोलोराडो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया है कि भारत की मुख्य टेक्टॉनिक प्लेट (इंडियन प्लेट) तिब्बत के नीचे दो हिस्सों में बंट रही है। यह प्रक्रिया हिमालय क्षेत्र में भविष्य में बड़े भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोटों का कारण बन सकती है।

क्या हो रहा है?

पृथ्वी की बाहरी परत कई प्लेटों में बंटी होती है, जो धीमी गति से खिसकती रहती हैं। भारत की प्लेट हर साल करीब 5 सेंटीमीटर उत्तर की ओर बढ़ती है। नई स्टडी के मुताबिक, तिब्बत के नीचे करीब 100 किलोमीटर गहराई पर यह प्लेट ऊपरी और निचले हिस्से में फटने लगी है —

  • ऊपरी हिस्सा हिमालय की ओर धकेल रहा है

  • निचला हिस्सा मंगोलिया की दिशा में खिसक रहा है

यह ‘रिफ्ट’ (फटाव) करीब 200–300 किलोमीटर लंबा है और तेजी से फैल रहा है। इसका असर पूरे एशियाई भूभाग पर पड़ सकता है।

वैज्ञानिकों का कहना

नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक ब्रैडेन चाउ का कहना है:यह फटाव हिमालय के निर्माण का नया अध्याय है। लेकिन इसका अर्थ है कि आने वाले युग में इस क्षेत्र में 8 से 9 तीव्रता के भूकंप आ सकते हैं। टीम ने 20 साल के सिस्मिक डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि प्लेट का निचला हिस्सा पिघलने लगा है — ठीक वैसे जैसे गर्मी में आइसक्रीम पिघलती है। इससे मैग्मा ऊपर उठ सकता है, जो ज्वालामुखीय गतिविधि को जन्म देगा।

भारतीय विशेषज्ञों की चेतावनी

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के डॉ. आर.के. सिंह ने कहा —

“हिमालय पहले से ही अत्यधिक भूकंप-संवेदनशील है। अगर यह फटाव बढ़ता है, तो इसका असर न सिर्फ उत्तर भारत बल्कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों तक महसूस होगा।”

2005 का कश्मीर भूकंप (7.6 तीव्रता) और 2015 का नेपाल भूकंप इसी टेक्टॉनिक दबाव का परिणाम थे।

टेक्टॉनिक्स प्लेट का विज्ञान

  • भारत की प्लेट अफ्रीका से अलग होकर उत्तर की ओर बढ़ी

  • हिमालय हर साल लगभग 5 मिमी ऊंचा हो रहा है

  • तिब्बत के नीचे “सबडक्शन (धंसना)” की जगह अब “रिफ्टिंग (फटना)” हो रही है

  • यह प्रक्रिया लाखों साल में नई प्लेटों का निर्माण कर सकती है

संभावित असर

    1. भूकंप: हिमालय बेल्ट दुनिया के 80% बड़े भूकंपों का केंद्र है।

    2. ज्वालामुखी और बाढ़: पिघलता मैग्मा नए ज्वालामुखी पैदा कर सकता है; ग्लेशियर पिघलने से गंगा-ब्रह्मपुत्र में बाढ़ का खतरा।

    3. मानव प्रभाव: करीब 10 करोड़ लोग हिमालयी क्षेत्र में रहते हैं — बड़े भूकंपों से अरबों डॉलर की क्षति संभव।

    4. पर्यावरण: जैव विविधता और जलवायु पर गहरा असर पड़ेगा।

भारत की तैयारी

भारत सरकार ने GSI और नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (NCS) को नए उपकरण लगाने के निर्देश दिए हैं।

  • तिब्बत सीमा पर 50 नए सिस्मिक सेंसर लगाए जा रहे हैं।

  • चीन के साथ डेटा साझा करने पर बातचीत जारी है।
    प्रधानमंत्री ने कहा:

“हिमालय हमारी विरासत है, इसकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है।”

आगे की राह: सतर्कता ही समाधान

वैज्ञानिक मानते हैं कि यह पृथ्वी के विकास की प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन चेतावनी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
भूकंपरोधी इमारतें, मॉनिटरिंग नेटवर्क और सामुदायिक जागरूकता ही नुकसान को कम कर सकती हैं।

“हिमालय बदल रहा है, लेकिन मजबूत है — हमें भी वैसा ही बनना होगा।”